
"रात का नशा अभी आँख से गया नहीं ........." गुलजार साहब का लिखा अशोका फिल्म का ये गाना आज भी दो दिलों कि धरकन को रूमानियत के धागे में पिरोकर एक कर देता है. 18 अगस्त 1936 को दीना ( जो कि अब पाकिस्तान में है) में जन्मे इस फनकार के बारे में शायद कि किसी ने सोचा होगा कि इस गुलज़ार कि रचनाओं से आगे जाकर साहित्य, रंगमंच और फ़िल्मी बगिया गुलज़ार हो उठेगी. समय आया और गया . समय के साथ सब कुछ बदला पर गुलज़ार साहब के नगमों ने मानो समय कि लगाम अपने हाथों में ले ली और ढलते समय और बदलते सामाजिक मूल्यों के धपेड़े गुलज़ार के नगमों के बागीचे को छु भी ना सके. बल्कि वोह खुद गुलज़ार के दुनिया का अटूट अंग बन गए और उन नगमों के रंग में रंग गए . समय के साथ गुलज़ार के शब्दों ने अपनी वेश भूषा थोडी बदली जरूर पर उनका शब्दों कि कशिश और जादू वही रहा जिसने पीढी दर पीढी को अपना मुरीद बना लिया. जिस तन्मयता के साथ लोग गुलज़ार साहब के गीतों और अन्य रचनायों पर मुग्ध को जाते थे, उसी तरह आज भी लोग उनके गीतों पर अपने पाओं को थिरकने से नहीं रोक पाते. "मुसाफिर हूँ यारों...ना घर है ना ठीकाना...." हो या कजरारे कजरारे या फिर बीरी जलैले....." पीढी देर पीढे पर गुलज़ार का जादू सिर चढ़ कर बोला और लोग गुलज़ार साहब के शब्दों में खुद को ढूँढ़ते रहे और उनके शब्दों के समुन्दर में गोते लगाते रहे. वे झुक कर शब्दों और मानविय सवेद्यनाओं के इस महान जादूगर को सलाम करते हैं. "मुसाफिर हूँ यारो ..........ना घर है ना ठीकाना मुझे चलते जाना है......." इस जैसे हजारों नगमों के रचियता आज भी ज़िन्दगी को शब्दों में पिरो कर चले जा रहे हैं. इस मुसाफिर के यात्रा के सह यात्री बने इनके अनगिनत चाहने वाले और बरबस ही इस मुसाफिर ने लोगों के दिलों में अपना ठीकाना बना लिया जिसकी बुनियाद दिन पर दिन मजबूत होती जा रही है.गुलज़ार साहब पर मेरा ये ब्लॉग मानो सूरज को दिया दिखाने जैसा है . पर गुलजार जैसे कोहिनूर गाहे बगाहे ही इस दुनिया में आते हैं और पूरी दुनिया पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ जाते हैं.बस यही दुआ है कि यह गुलज़ार और अधिक गुलज़ार हो और हमारी प्रेरणा और सहारा बना रहे. HAPPY BIRTHDAY GULZAAR SAHAB!