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Friday, August 27, 2010

सक्सेस के बदलते फंडे

(सफल होने के नुस्खे)*


(* कृपया ध्यान दें---सफल होने के लिए जरूरी चीजों की ये लिस्ट पूरी नहीं है. इसमे कुछ और नाम/नुस्खे जुड़ सकते हैं.)


हार्ड वर्क इज दी की टू सक्सेस .”


“अगर सफल बनने की चाहत रखते हो तो मेहनत से जी नहीं चुराना होगा .”


“कठिन परिश्रम से ही सफलता आपके कदम चूमेगी.”


“मेहनत ही सफलता की कुंजी है .”


बचपन से ही अक्सर इन वाक्यों से सामना हो जाया करता था . बड़ों और टीचरों को अक्सर इस तरह की बातें करते सुनता था . सोचता था चलो भाई सफल होने के लिए इतना तो कर ही सकता था . बस मेहनत ही तो एकमात्र शर्त थी सफल होने के लिए . पर जैसे जैसे बड़ा होता गया ये लिस्ट लम्बी होती चली गयी --- अनुशासन , संकल्प , आत्मविश्वास , त्याग , समर्पण , धैर्य ……………


बाप रे बाप ! मैं तो डर गया . ये लिस्ट तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी . कहाँ सिर्फ मेहनत ही काफी बताई जा रही थी सफल बनने के लिए वहां इतने सारे नाम और जुड़ गए थे . खैर , चलो यहाँ तक तो ठीक था . मेहनत के साथ -साथ इन चीजों का भी बंदोबस्त किया जा सकता था . सफलता पाने के लिए इतनी कीमत तो चुकाई ही जा सकती है .उसमे कोई हर्ज़ नहीं . पर हाल के समय में सफल होने के लिए जरूरी चीजों की लिस्ट में जो नाम जुडे हैं , उससे मैं कनफिउज्फ़ हो गया हूँ .वो नाम हैं ----चापलूसी , सोर्स और पैरवी , कॉन्टेक्ट्स , जीहजूरी और न जाने क्या -क्या !


जहाँ तक मेरी बात है तो मैं स्क्रिप्ट राइटिंग के फिल्ड में करियर बनाना चाहता हूँ . और इसके लिए मुझे जितनी मेहनत करनी पड़े मुझे मंजूर है .पर और सब चीज़ें मुझसे होना थोडा मुश्किल लगता है . रही बात कॉन्टेक्ट्स की तो वो मेरे पास नहीं है . अब इसमे मैं क्या कर सकता हूँ ? अब एक अच्छी कहानी ,स्क्रिप्ट लिखने पर अपना सारा फोकस रखूं या फिर दूसरों से फ़रियाद करता हुआ नेटवर्किंग बनाने में ही अपनी सारी एनर्जी झोंक दूँ ?




यहाँ ऐसा न समझा जाए की मैं नेटवर्किंग के खिलाफ हूँ . मैं बस पूरी तरह से किसी और के भरोसे और रहमो -करम पे रहने के खिलाफ हूँ . और वैसे भी आज के जमाने में कौन किसी के लिए कुछ करता है . मेरा मानना है की टैलेंट अपना रास्ता खुद खोज लेगी और उसे सोर्स और पैरवी , कॉन्टेक्ट्स आदि का मोहताज रहने की जरूरत नहीं . They will take care of themselves. 


बस अपना काम पूरी शिद्दत और ईमानदारी से करो . टेलेंट के कद्रदान खुद -बा-खुद किसी न किसी रास्ते आपके पास पहुँच जाएंगे . क्या मेरी ये सोच गलत है ? क्या अपनी काबिलियत और मेहनत पर मेरा भरोसा काफी नहीं?
क्या इस तरह की विचारधारा रखकर मैं अपने आप को एक बडे निराशा और असफलता की ओर धकेल रहा हूँ ?




“ प्रेक्टिकल बनो प्रेक्टिकल . ऐसी आदर्शवादी सोच बस तुम्हारी ब्लॉग डायरी तक ही
सीमित रहे तो बेहतर होगा तुम्हारे लिए . अपने इगो , आत्मसम्मान को गंगा नदी में बहा कर ही प्रोफेशनल दुनिया में कदम रखो तो सही होगा . वैसे भी तुमने मीडिया की लाइन चुनी है उसमे सिर्फ टैलेंट होने या मेहनत से कोई गुजारा नहीं होने वाला . अपनी इस सोच को पीछे छोड़ दो नहीं तो खुद काफी पीछे छुट जाओगे .


मीडिया के फिल्ड में अगर पैर ज़माना है तो चापलूसी , काम निकलवाने  की कला , जीहजूरी ,पहुँच और मोटी चमरी वाला होना पड़ेगा . नहीं तो इसके बिना गुजारा नहीं . अगर यही आदर्शवादी रवैया रहा तो कल को कोई और बाजी मार ले जाएंगे और तुम अपने इन एथिक्स का ढोल पीटते रह जाओगे. Get real and practical."   एक ‘अनुभवी ’ और ‘दुनियादार ’ इंसान ने ‘रिएल्टी ’ का फर्स्ट -हैंड अनुभव बताते हुए मशवरा दिया .




बहुत जल्द इस ‘प्रेक्टिकल ’ दुनिया से मैं दो -चार होने वाला हूँ . मालूम नहीं कैसे सरवाइव कर पाऊंगा . क्यूंकि इस ‘प्रेक्टिकल ’ वर्ल्ड में सफल होने के जो पैमाने तय रखे गए हैं , वो ‘गुण ’ मेरे mein अभी तक नहीं आ सके हैं . अपने पैशन ,मेहनत , लेखन कौशल ,खुद पर यकीं पर ही पूरी तरह निर्भर होकर मैं अपने करियर की शुरुआत करने जा रहा हूँ . 1-2 दिनों में मुझे एक न्यूज़ चैनल में interview के लिए जाना है और हो सकता है की मेरे करियर की शुरुआत यहीं से हो . खैर , अब रात के 2 बज चुके हैं . अपना ये ब्लॉग मैं यहीं पर ख़त्म करता हूँ . देखते हैं की ये ‘प्रेक्टिकल ’ दुनिया मुझे अपने अनुसार ढाल देती है या मेरी इस सोच की जीत होती है कि मेरा टैलंट और मेहनत मेरा बेडा पार लगा देगी.


“अरे ये लड़का कब सुधरेगा ? आठ बज गए हैं पर अभी तक चादर तान सोये हुआ है . दिन चढ़ आया है फिर भी इस घर के लोग सोये रहते हैं . इसलिए हमारे घर में बरकत (तरक्की ) नहीं हो रही है . दस साल पहले जहाँ थे आज भी वहीँ है . दस साल से श्रीवास्तव जी हमारे यहाँ रेंटर है पर आज उनके यहाँ क्या नहीं है ? कल तो उन्होने नया एसी भी लगवा लिया और अपने यहाँ कूलर तक नदारद है ………………….” मुझे खरी -खोटी सुनाते हुए माँ बोली .


झट से मेरी आँख खुल गयी . 

माँ के तानों के कारण नहीं बल्कि इस वजह से कि सफल होने के लिए जरूरी चीजों की लिस्ट में आज एक और नाम /नुस्खा जुड़ गया था -----सुबह जल्दी उठना !


….

Sunday, August 1, 2010

A Letter to My Friend

Dear Friend,


सच्ची दोस्ती का रिश्ता अल्फाजों का मोहताज नहीं होता. वोह तोह बस एक एहसास है जो नजरों ही नजरों में अपनी बात कह जाता है. पर मुझे कन्जेकतीवाइटिस और तुम्हारे भैंगे होने के कारण मुझे शब्दों का सहारा लेना पड़ रहा है.


फिल्मों में देखा-सुना था कि दोस्ती में " नो सौरी नो थैंक य़ू ". पर तुम्हारी दोस्ती ने लोगों से बस यही दो शब्द मुझे नसीब करवाए.


"सौरी"---जो मुझे लोगों को तुम्हारी करतूतों के कारण बोलना पड़ता था और "थैंक य़ू "जो लोग मुझे तुम्हारे लिए हुए क़र्ज़ और उधार के सामान उन्हें वापस लौटाने पर बोलते थे.


पर इन सब के बाद भी मैं तुम जैसा सच्चा दोस्त पाकर खुश हूँ . मैं तुम्हे बेहद पसंद करता हूँ ( नो ‘दोस्ताना ’ एंगल हिअर प्लीज़ !) क्यूंकि तुमने मुझे खुद को पसंद करना सिखाया . अगर तुम ना होते तो मुझे कभी नहीं पता चलता कि ‘माल्व्रो ’, ‘गोल्ड फ्लेक ’ और ‘क्लासिक ’ से ज्यादा पैसा वसूल विकल्प है(ये सभी सिगरेट ब्रांड्स हैं) . मेरी दुनिया तो ‘बैगपाइपर ’ और ‘हेवार्ड 5000’ तक ही सीमित होकर रह जाती अगर तुमने ‘किंगफिशर ’ और ‘थंडरवोल्ट ’ से मेरी पहचान नहीं कराई होती(ये सभी शराब के प्रोडक्ट्स हैं) !


तुमने मेरे लिए क्या क्या नहीं किया है ! अगर सबकी गिनती करवाने लग जाऊं तो इतने साल निकल जाएंगे जितने साल “क्यूंकि सास भी कभी बहू थी ” भी न टेलीकास्ट हुई होगी ! किस मुंह से तुम्हारा शुक्रीया अदा करूँ ? जो मुह मेरे पास है वो तो तुहारी वजह से अपने मम्मी -पापा से थप्पर खाते -खाते सूज गया है . इसलिए इस लेटर का सहारा ले रहा हूँ.




उम्मीद है जहाँ भी तुम रहो वहाँ के लोग सही -सलामत रहे .


तुम्हारा दोस्त


चन्दन