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Sunday, March 25, 2012

‘गाय' पर एक लेख



जब  से   मेरे   कॉलेज  के  एक  टीचर  ने  हमें  ‘गाय’ पर  लेख  लिखने  को  कहा  मैंने  पूरी  दिल्ली  और  गुडगाँव  छान  मारा  पर  मुझे  कोई  

खटाल  मिली ही   नहीं  कि  मुझे   एक  गाय  दिख   जाए   और  मैं   उसपर   अपनी  नोटबुक  रख  एक लेख  लिख  सकता ! और  सर  ने

टॉपिक  भी  नहीं  बताया  कि  किस (हिंदी  वाला  'किस';इंग्लिश  वाला  नहीं !) टॉपिक पर  लिखना  है  बस  ये  कह  दिया  की ‘गाय ’ पर एक

लेख लिखने  की  कोशिश  करिएगा  आप   लोग  !

खैर  ‘गाय ’ पर  कर  लिखने   का  सौभाग्य  नहीं  मिल  सका तो  क्या  हुआ ? ‘गाय ’ टॉपिक  पर  ही  लिख  देता  हूँ  एक  लेख !

बचपन  से  ही  बड़ा  गहरा  रिश्ता  रहा  है  ‘गाय ’ शब्द  से .

याद  है  मुझे  की  किस  तरह  मन  मारकर  इसी  ‘गाय ’ का  दूध  मुझे  सुबह -शाम  पीना  पड़ता  था .

पर  फायदा  कुछ  नहीं  हुआ   क्यूंकि  जितना  ही  मैं  ‘गाय ’ का   दूध  पीता  था  परीक्षा  में  मार्क्स  उतने  ही  कम  आया  करते  थे ! और

इसी  कारण  मुझे  इस  ‘गाय ’ के  ही  मेल  वर्ज़न  ‘बैल ’ की  उपाधि  मेरे  टीचर्स  ने  दे  रखी  थी  !

(हालांकि  कुछ  और  जानवरों  के  अलंकार  से  मुझे  समय -समय  पर  नवाज़ा  जाता  रहा  जैसे  ‘गिरगिट ’(पापा  और  मम्मी  के  फ्रेंड्स 

द्वारा  जब  मैं  हर  साल  फ्रेंडशिप  डे पर  उनकी  बेटियों  से  फ्रेंडशिप  बैंड  तो  बंधवा  लेता  था  पर  राखी  के  टाइम  पर  वादा  कर  के  भी

उनके  यहाँ  नहीं  जाता  था ) ; ‘गधा’ (मेरे  पापा  द्वारा ); ‘बन्दर ’(मोहल्ले  वालों  द्वारा ); ‘कुत्ता ’(अपनी  बेहें  और  कज़न्स  द्वारा  जब  मैं

उनके  हिस्से  की  मिठाई /आइसक्रीम  खा  जाया  करता  था ); ‘चूहा ’(अपनी  मम्मी  द्वारा  जब  मैं  काजू -पिस्ता  और  खाने  की

बाकी  दूसरी  चीज़ें  घर  में  कहीं  भी  छुपा  देने  पर  भी  ढूंढ  के  चट कर  जाता  था ).

खैर , ‘गाय ’ पर  वापस  आता  हूँ . बडे  होकर  भी  ‘गाय ’ से  पिंड  नहीं  छुटा मेरा ! जब  मोहल्ले -शहर में  मेरे  प्यार  में  पड़ने  की  खबर 

फैली  तो  सब  लोगों  ने  मेरी  ‘भावना ’ का  ख्याल  नहीं  रखते  है  एक  सुर   mein यही  सवाल   पूछा ---- “हु  इस  द लक्की  गाय ? :’( “

उम्मीद  करता  हूँ  कि  आज  तक  जिस  ‘गाय ’ ने  मुझे  न  जाने  कितने  सितम  दिए , वो  ‘गाय ’ इस  लेख  के  जरिये  थोड़ी -बहुत ही

सही  पर  वाहवाही   जरुर  दिलवादे !



Monday, March 19, 2012

'बड़ा ' होता छोटा पर्दा !

This is the news script I've written. I want you to give your feedback on the script as well as my visualization

abilities.





AUDIO(V.O.)
VIDEO
 छोटा  पर्दा  अब  'छोटा'  नहीं  रहा . 'हम  लोग '; ‘नुक्कड़ ’; ‘रामायण ’ आदि  के  जरिये  छोटे -छोटे  डेग भरता  छोटा  पर्दा  अब  अश्लीलता  और गाली-गलौज  के  ट्रैक  पर  बुलेट  ट्रेन  की  स्पीड  से  भी  तेजी  से  भागा  जा रहा है.

 अश्लीलता और अभद्रता की भाषा बोल रहा है....

THE LOVEMAKING SCENE FROM THE BALAJI SHOW BADAY ACCHE LAGTE HAIN(BALH) IS PLAYED FOR A FEW SECONDS BEFORE THE VOICE OVER STARTS.

MONTAGE OF SHOWS LIKE “HUM LOG”; “NUKKAD”; “RAMAYAN” ARE SHOWN IN QUICK SUCCESSIONS FOLLOWED BY THE LOVEMAKING SCENE FROM “BADAY ACCHE LAGTAY HAIN” AND ABUSIVE LANGUAGE FROM THE SHOW MTV ROADIES.
ये  किसी  कॉम्प्लान  या  जन्मघुट्टी  की  खुराक  का  कमाल  नहीं  जनाब  बल्कि  सेक्स  और  गाली -गलौज  के डोज़  का  असर  है !

CLIP OF THE COMPLAN COMMERCIAL IN WHICH

CHILDREN ARE SEEN MEASURING THEIR HEIGHT.


पर  छोटे  परदे के  ठेकेदार  इसे  अपनी  टीआरपी  की  लालच  नहीं  बल्कि  इसके  ‘पिछडेपनको  दूर  करने  का  रामबाण   बता   रहे   हैं  .

CLIPS OF EKTA KAPOOR AND MTV ROADIES

MAKERS’ RAGHU AND RAJEEV.
पर  क्या  ‘एडवांस ’ बनने  का  मतलब  ऐसे  सीन  दिखाना  है जिससे  आँखें  टीवी  स्क्रीन  छोड़  बाकी  सभी  और  देखने  को  मजबूर  हो  जाए . या  फिर  ऐसे  डायलोग  सुनाना  जिसके  बोल  सिर्फ  यही  हो ----- ‘बीप ’; ‘बीप ’ ; ‘बीप ’!

 AGAIN CLIPS OF THE SHOW BALH AND MTV

ROADIES PLAYED OUT.
टीवी  की  दुनिया  दर्शकों  की  तालियों  की  आवाज़  पर  नहीं  बल्कि  सिक्कों  की  खनक  पर  चलती  है . और  ये  आती  है  ऊँची  टीआरपी से . पर  टीआरपी   की  फिनिशिंग  लाइन  को  पार करने  की  होड़  में   यू  सामाजिक  मूल्यों  और  शालीनता  के  बैरिअर  को  लांघना  जरुरी  है ? छोटे  परदे  का  एक  बड़ा  दर्शक  वर्ग  महिलाएं  और  बच्चे  होते  है ; "बड़े  अच्छे   लगते  हैं"  जैसे  शो  को  देखने  वाला  पूरा  परिवार  होता  है !

  CLIPS OF SHOWS LIKE BIG BOSS FEATURING

INTERNATIONAL PORN STAR SUNNY LEON AND

ASHMIT PATEL-VEENA MALIK CLIP.
पिछले  दो  हफ्तों  के  आंकडों  की  बात  करें  तो  छोटे  परदे  को  मॉडर्न ’ बनाने  का  ठेका  लेना  वाले  टीवी  शो  जैसे  बडे अच्छे  लगते  हैं टॉप  10 टीवी  शो  में  कहीं   जगह  नहीं  बनाते  दिखते !

THE TRPs OF THE PAST TWO WEEKS ARE

SHOWN THROUGH GRAPHICS.
पर  जब  18 मार्च  को  है  2012 फिक्की  फ्रेम्स  अवार्ड  में  बडे  अच्छे  लगते  हैं" को बेस्ट फिक्शन शो का अवार्ड मिलने की खबर आती है मन बरबस ये सोचने को मजबूर हो जाता है की क्या अवार्ड के ठीक पहले एक फैमिली शो में इस तरह के एडल्ट सीन दिखाना कहीं सुर्खियों में आने का कथ्कंडा तो नहीं! 
बात कुछ भी हो डर सिर्फ इस बात का है कि हमेशा भेडचाल कि नीति अपनाने वाला छोटा पर्दा ऐसे सीन दिखाना एक आदत न बना ले और  इससे दूर रहने वाले शो और दर्शक को चिढ़ाते हुए ये न कहे की जनाब आप तो  "बडे बच्चे लगते हैं" !